श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 5: नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  10.5.23 
 
 
दिष्टय‍ा भ्रात: प्रवयस इदानीमप्रजस्य ते ।
प्रजाशाया निवृत्तस्य प्रजा यत् समपद्यत ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरे भाई नंद महाराज, बुढ़ापे में तुम्हें पुत्र न होने के कारण तुम निराश हो चुके थे। इसलिए, अब जब तुम्हें पुत्र प्राप्त हो गया है, तो यह बहुत बड़े सौभाग्य का संकेत है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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