श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 5: नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  10.5.18 
 
 
तत आरभ्य नन्दस्य व्रज: सर्वसमृद्धिमान् ।
हरेर्निवासात्मगुणै रमाक्रीडमभून्नृप ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाराज परीक्षित, नंद महाराज के घर को पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान और उनके दिव्य गुणों का शाश्वत निवास स्थान होने के कारण हमेशा से ही सभी संपदाओं का ऐश्वर्य प्राप्त था। लेकिन, भगवान कृष्ण के आगमन से यह देवी लक्ष्मी की क्रीड़ास्थली बन गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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