श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 5: नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  10.5.15-16 
 
 
नन्दो महामनास्तेभ्यो वासोऽलङ्कारगोधनम् ।
सूतमागधवन्दिभ्यो येऽन्ये विद्योपजीविन: ॥ १५ ॥
तैस्तै: कामैरदीनात्मा यथोचितमपूजयत् ।
विष्णोराराधनार्थाय स्वपुत्रस्योदयाय च ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  उदारचेता महाराज नन्द ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए ग्वालों को वस्त्र, आभूषण और गायें दान में दीं। इस तरह उन्होंने अपने पुत्र श्रीकृष्ण की दशा को सभी प्रकार से सुधारा। उन्होंने सूतों, मागधों, वन्दीजनों और अन्य वृत्ति वाले लोगों को उनकी शैक्षिक योग्यता के अनुसार दान दिया और हर एक की इच्छाओं को तुष्ट किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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