श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 5: नन्द महाराज तथा वसुदेव की भेंट  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.5.11 
 
 
गोप्य: सुमृष्टमणिकुण्डलनिष्ककण्ठ्य-
श्चित्राम्बरा: पथि शिखाच्युतमाल्यवर्षा: ।
नन्दालयं सवलया व्रजतीर्विरेजु-
र्व्यालोलकुण्डलपयोधरहारशोभा: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  गोपियों के कानो में जगमगाती हुई रत्नजड़ित बालियां थीं और गले में चमकते हुए धातु के लॉकेट लटक रहे थे। उनके हाथ चूड़ियों से सजे हुए थे और उनकी पोशाकों के रंग-बिरंगे थे। उनके बालों में लगे फूल रास्तों पर इस तरह गिर रहे थे जैसे बारिश की फुहारें गिरती हों। इस तरह से महाराजा नंद के घर जाते समय गोपियों के कुंडल, मालाएँ और उनके सुडौल स्तन हिलते हुए अत्यंत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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