श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 45: कृष्ण द्वारा अपने गुरु-पुत्र की रक्षा  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.45.5 
 
 
सर्वार्थसम्भवो देहो जनित: पोषितो यत: ।
न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मर्त्य: शतायुषा ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  मनुष्य अपने शरीर से जीवन के सारे लक्ष्य प्राप्त कर सकता है और माता-पिता ही वो लोग हैं जो इस शरीर को जन्म देते और उसका पोषण करते हैं। इस प्रकार कोई भी इंसान, अपने माता-पिता की पूरी उम्र तक सेवा करके भी, अपने माता-पिता के ऋण को नहीं उतार सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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