सर्वार्थसम्भवो देहो जनित: पोषितो यत: ।
न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मर्त्य: शतायुषा ॥ ५ ॥
अनुवाद
मनुष्य अपने शरीर से जीवन के सारे लक्ष्य प्राप्त कर सकता है और माता-पिता ही वो लोग हैं जो इस शरीर को जन्म देते और उसका पोषण करते हैं। इस प्रकार कोई भी इंसान, अपने माता-पिता की पूरी उम्र तक सेवा करके भी, अपने माता-पिता के ऋण को नहीं उतार सकता।