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अध्याय 45: कृष्ण द्वारा अपने गुरु-पुत्र की रक्षा
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श्लोक 12
श्लोक
10.45.12
एवमाश्वास्य पितरौ भगवान्देवकीसुत: ।
मातामहं तूग्रसेनं यदूनामकरोन्नृपम् ॥ १२ ॥
अनुवाद
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इस प्रकार अपनी माता और पिता को सान्त्वना देते हुए और देवकी के पुत्र के रूप में प्रकट होकर, भगवान् ने अपने नाना उग्रसेन को यदुओं का राजा बना दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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