श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 41: कृष्ण तथा बलराम का मथुरा में प्रवेश  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.41.2 
 
 
सोऽपि चान्तर्हितं वीक्ष्य जलादुन्मज्य सत्वर: ।
कृत्वा चावश्यकं सर्वं विस्मितो रथमागमत् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  जब अक्रूरजी ने वह दृश्य अन्तर्धान होते देखा तब वे जल से बाहर आ गये और तुरन्त अपने विभिन्न कर्मकाण्ड पूरे कर लिये। तत्पश्चात् वे आश्चर्यचकित होकर रथ पर लौट आये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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