श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 40: अक्रूर द्वारा स्तुति  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  10.40.2 
 
 
भूस्तोयमग्नि: पवनं खमादि-
र्महानजादिर्मन इन्द्रियाणि ।
सर्वेन्द्रियार्था विबुधाश्च सर्वे
ये हेतवस्ते जगतोऽङ्गभूता: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश और इसका मूल, मिथ्या अहंकार, महत्-तत्त्व, समस्त भौतिक प्रकृति और इसका स्रोत, भगवान् का पुरुष अंश, मन, इंद्रियाँ, इंद्रिय विषय और इंद्रियों के अधिष्ठाता देवता—ये सभी जगत के कारण आपके दिव्य शरीर से उत्पन्न हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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