दिव्यस्रगम्बरालेपरत्नाभरणभूषिता ।
धनु:शूलेषुचर्मासिशङ्खचक्रगदाधरा ॥ १० ॥
सिद्धचारणगन्धर्वैरप्सर:किन्नरोरगै: ।
उपाहृतोरुबलिभि: स्तूयमानेदमब्रवीत् ॥ ११ ॥
अनुवाद
देवी दुर्गा फूलों की सुंदर मालाओं से सजी-धजी थीं, उनका शरीर उत्तम चंदन से लेपित था और वे ऐसे वस्त्रों से सुशोभित थीं जो अति सुंदर और बहुमूल्य आभूषणों से सुशोभित थे। उनके हाथों में एक धनुष, एक त्रिशूल, बाणों का एक गुच्छा, एक ढाल, एक तलवार, एक शंख, एक चक्र और एक गदा थी। देवी अप्सराओं, किन्नरों, उरागों, सिद्धों, चारणों और गंधर्वों द्वारा स्तुति और आराधना की जा रही थीं, जो सभी प्रकार की भेंटों के साथ उनकी पूजा कर रहे थे। तब देवी दुर्गा ने इस प्रकार कहा।