श्रीशुक उवाच
अक्रूरोऽपि च तां रात्रिं मधुपुर्यां महामति: ।
उषित्वा रथमास्थाय प्रययौ नन्दगोकुलम् ॥ १ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा कि महामति अक्रूर ने रात को मथुरा में व्यतीत किया और इसके बाद अपने रथ पर सवार होकर नंद महाराज के ग्वाल-ग्राम के लिए प्रस्थान किया।