कस्याश्चिन्नाट्यविक्षिप्त कुण्डलत्विषमण्डितम् ।
गण्डं गण्डे सन्दधत्या: प्रादात्ताम्बूलचर्वितम् ॥ १२ ॥
अनुवाद
एक गोपी ने अपने कुंडलों की चमक से सुशोभित अपने गाल को कृष्ण के गाल से सटा दिया, जो उनके नाचने के साथ ही चमक रहा था। तब कृष्ण ने सावधानी से उसे अपना चबाया हुआ पान दे दिया।