श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 33: रास नृत्य  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.33.12 
 
 
कस्याश्‍चिन्नाट्यविक्षिप्त कुण्डलत्विषमण्डितम् ।
गण्डं गण्डे सन्दधत्या: प्रादात्ताम्बूलचर्वितम् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  एक गोपी ने अपने कुंडलों की चमक से सुशोभित अपने गाल को कृष्ण के गाल से सटा दिया, जो उनके नाचने के साथ ही चमक रहा था। तब कृष्ण ने सावधानी से उसे अपना चबाया हुआ पान दे दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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