श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 32: पुन: मिलाप  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  10.32.11-12 
 
 
ता: समादाय कालिन्द्या निर्विश्य पुलिनं विभु: ।
विकसत्कुन्दमन्दारसुरभ्यनिलषट्पदम् ॥ ११ ॥
शरच्चन्द्रांशुसन्दोहध्वस्तदोषातम: शिवम् ।
कृष्णाया हस्ततरलाचितकोमलवालुकम् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात सर्वशक्तिमान प्रभु गोपियों को अपने साथ कालिन्दी के किनारे ले गये, जिसने अपने किनारे पर अपनी लहरों के हाथों से मुलायम रेत के ढेर बिखेर रखे थे। उस सुहावने स्थान में खिले कुंद और मंदार के फूलों की खुशबू हवा में घुली हुई थी, जिससे कई भौरे आकर्षित हो रहे थे। शरद ऋतु के चाँद की प्रचुर किरणें रात के अँधेरे को दूर कर रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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