श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.31.7 
 
 
प्रणतदेहिनां पापकर्षणं
तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदाम्बुजं
कृणु कुचेषु न: कृन्धि हृच्छयम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे भगवान! आपके चरण-कमल आपके शरणागत देहधारियों के सारे पुराने पापों का नाश करने वाले हैं। वे ही चरण गायों के पीछे-पीछे चरागाहों में चलते हैं और माँ लक्ष्मी के निरंतर धाम हैं। चूँकि आपने एक बार उन चरणों को महासर्प कालिय के फन पर रखा था, इसलिए अब आप उन्हें हमारे सीने पर रखकर हमारे हृदय की कामवासना को दूर कर दीजिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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