श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.31.5 
 
 
विरचिताभयं वृष्णिधूर्य ते
चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं
शिरसि धेहि न: श्रीकरग्रहम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे वृष्णियों में श्रेष्ठ, लक्ष्मीजी का हाथ थामने वाला आपका कमल सा हाथ, भवसागर के भय से आपके चरणों में पहुँचने वालों को निडरता प्रदान करता है। हे प्यारे, वो इच्छापूर्ण करने वाला कमल हम पर रखें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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