श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.31.4 
 
 
न खलु गोपीकानन्दनो भवान्
अखिलदेहिनामन्तरात्मद‍ृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
सख उदेयिवान् सात्वतां कुले ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  हे मित्र, तुम वास्तव में गोपी यशोदा के पुत्र नहीं हो, अपितु समस्त मनुष्यों के हृदय में विराजित साक्षी हो। चूँकि ब्रह्माजी ने तुमसे अवतार लेने और ब्रह्मांड की रक्षा करने के लिए प्रार्थना की थी इसलिए तुम सात्वत वंश मे प्रकट हुए हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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