श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  10.31.3 
 
 
विषजलाप्ययाद् व्यालराक्षसाद्
वर्षमारुताद् वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद् विश्वतो भया-
दृषभ ते वयं रक्षिता मुहु: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे पुरुषश्रेष्ठ, आपने हम सबों को अनेक संकटों से बचाया है—जैसे कि ज़हरीले जल से, भयंकर मनुष्य-भक्षक अघासुर से, मूसलाधार वर्षा से, भंवर से, इंद्र के अग्नि-तुल्य वज्र से, वृषासुर से और मय दानव के पुत्र से।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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