श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.31.13 
 
 
प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शन्तमं च ते
रमण न: स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी के पूजे गये चरणकमल उन सबकी इच्छाएँ पूरी करते हैं जो उनके आगे नतमस्तक होते हैं। वे पृथ्वी के आभूषण हैं, उनका स्पर्श सर्वोत्तम आनंद देता है, और मुसीबत के समय उनका चिंतन ही सब समस्याओं का समाधान है। हे मेरे प्रियतम, हे चिंताओं के नाश करने वाले, कृपा करके अपने उन चरणकमलों को हमारे हृदय पर रख दो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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