श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 31: गोपियों के विरह गीत  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  10.31.11 
 
 
चलसि यद् व्रजाच्चारयन् पशून्
नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरै: सीदतीति न:
कलिलतां मन: कान्त गच्छति ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  हे स्वामी, हे प्रियतम, जब आप गाँव छोड़कर गौओं को चराने जाते हैं, तो हमारे मन इस विचार से व्याकुल हो उठते हैं कि कमल से भी अधिक सुंदर आपके चरणों में अनाज के नुकीले छिलके तथा घास-पात के तिनके चुभ-चुभ जायेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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