श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 30: गोपियों द्वारा कृष्ण की खोज  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.30.12 
 
 
बाहुं प्रियांस उपधाय गृहीतपद्मो
रामानुजस्तुलसिकालिकुलैर्मदान्धै: ।
अन्वीयमान इह वस्तरव: प्रणामं
किं वाभिनन्दति चरन् प्रणयावलोकै: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे वृक्षो, हम देख रही हैं कि तुम झुक रहे हो। जब राम के छोटे भाई इधर से गये जिनके पीछे-पीछे भौंरे उनकी माला की तुलसी मंजरी के चारों ओर मँडरा रहे थे तो क्या उन्होंने अपनी स्नेहपूर्ण चितवन से तुम्हारे प्रणामों को स्वीकार किया था? वे अवश्य ही अपनी बाँह अपनी प्रिया के कंधे पर रखे रहे होंगे और दूसरे हाथ में कमल का फूल लिये रहे होंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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