श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 30: गोपियों द्वारा कृष्ण की खोज  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  10.30.10 
 
 
किं ते कृतं क्षिति तपो बत केशवाङ्‍‍‍‍‍घ्रि-
स्पर्शोत्सवोत्पुलकिताङ्गरुहैर्विभासि ।
अप्यङ्‍‍‍‍‍घ्रिसम्भव उरुक्रमविक्रमाद् वा
आहो वराहवपुष: परिरम्भणेन ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  हे माता पृथ्वी, तुमने भगवान केशव के चरण-कमलों का स्पर्श प्राप्त करने के लिए कौन-सी तपस्या की, जिसके कारण तुम परम आनंद से भर गई हो और तुम्हारे शरीर पर रोमांच हो रहा है? इस स्थिति में तुम बहुत सुंदर दिख रही हो। क्या भगवान के इसी प्रकटीकरण के समय तुम्हें ये भाव-लक्षण प्राप्त हुए हैं या फिर और पहले जब उन्होंने तुम पर वामनदेव के रूप में अपने पैर रखे थे या इससे भी पहले जब उन्होंने वराहदेव के रूप में तुम्हें गले लगाया था?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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