श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 29: रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  10.29.4 
 
 
निशम्य गीतं तदनङ्गवर्धनंव्रजस्त्रिय: कृष्णगृहीतमानसा: ।
आजग्मुरन्योन्यमलक्षितोद्यमा:स यत्र कान्तो जवलोलकुण्डला: ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  जब वृन्दावन की युवतियों ने कृष्ण की बाँसुरी की धुन सुनी, जिससे प्रेम की भावनाएँ जाग उठीं, तो उनके मन भगवान श्री कृष्ण में लीन हो गए। वे जहाँ उनका प्रेमी उनका इंतज़ार कर रहा था, वहाँ चली गईं। वे एक-दूसरे को देखे बिना ही इतनी तेज़ी से चल रही थीं कि उनके कानों की बालियाँ झूल रही थीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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