श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 29: रासनृत्य के लिए कृष्ण तथा गोपियों का मिलन  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  10.29.31 
 
 
गोप्य ऊचु:
मैवं विभोऽर्हति भवान् गदितुं नृशंसं
सन्त्यज्य सर्वविषयांस्तव पादमूलम् ।
भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान्
देवो यथादिपुरुषो भजते मुमुक्षून् ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  सुंदर गोपियों ने कहा - हे सर्वशक्तिमान! आप इस तरह से निर्दयी होकर नहीं बोल सकते। जो भौतिक सुख को त्यागकर सिर्फ और सिर्फ आपके चरणों की भक्ति करना चाहती हैं, उन्हें ना ठुकराइये। हे जिद्दी! हमारे साथ वैसा ही प्रेम भाव रखें, जिस तरह से श्री नारायण अपने भक्तों से रखते हैं, जो कि मोक्ष/मुक्ति के लिए प्रयत्न करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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