श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 28: कृष्ण द्वारा वरुणलोक से नन्द महाराज की रक्षा  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  10.28.3 
 
 
चुक्रुशुस्तमपश्यन्त: कृष्ण रामेति गोपका: ।
भगवांस्तदुपश्रुत्य पितरं वरुणाहृतम् ।
तदन्तिकं गतो राजन्स्वानामभयदो विभु: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, नन्द महाराज को न देखकर ग्वाले जोर से चिल्ला उठे, “हे कृष्ण! हे राम!” भगवान् कृष्ण ने उनकी चीखें सुनीं और समझ लिया कि मेरे पिता को वरुणदेव ने पकड़ लिया है। इसलिए अपने भक्तों को निडर बनाने वाले सर्वशक्तिमान भगवान वरुणदेव के दरबार में पहुँचे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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