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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ
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अध्याय 27: इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति
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श्लोक 4
श्लोक
10.27.4
इन्द्र उवाच
विशुद्धसत्त्वं तव धाम शान्तंतपोमयं ध्वस्तरजस्तमस्कम् ।
मायामयोऽयं गुणसम्प्रवाहोन विद्यते तेऽग्रहणानुबन्ध: ॥ ४ ॥
अनुवाद
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राजा इन्द्र बोले: तुम्हारा दिव्य रूप, जो कि शुद्ध सत्व गुण का प्रकटीकरण है, परिवर्तन से अविचलित रहता है, ज्ञान से जगमगाता रहता है और रजोगुण और तमोगुण से रहित है। तुममें भौतिक गुणों का प्रबल प्रवाह नहीं है, जो माया और अज्ञान पर आधारित है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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