श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 27: इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  10.27.17 
 
 
गम्यतां शक्र भद्रं व: क्रियतां मेऽनुशासनम् ।
स्थीयतां स्वाधिकारेषु युक्तैर्व: स्तम्भवर्जितै: ॥ १७ ॥
 
अनुवाद
 
  इन्द्र, अब तुम जा सकते हो। मेरी आज्ञा का पालन करो और स्वर्ग के राज पद पर बने रहो। किन्तु मिथ्या अभिमान से रहित होकर गंभीर बने रहना।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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