श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 27: इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  10.27.15 
 
 
श्रीभगवानुवाच
मया तेऽकारि मघवन् मखभङ्गोऽनुगृह्णता ।
मदनुस्मृतये नित्यं मत्तस्येन्द्र श्रिया भृशम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान बोले: हे इंद्र, मैंने तुम्हारे निमित्त होने वाले यज्ञ को दयावश ही रोक दिया था। स्वर्ग के राजा के रूप में तुम अपने ऐश्वर्य से बहुत उन्मत्त हो गए थे और मैं चाहता था कि तुम सदैव मेरा स्मरण करते रहो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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