श्रीशुक उवाच
गोवर्धने धृते शैले आसाराद् रक्षिते व्रजे ।
गोलोकादाव्रजत्कृष्णं सुरभि: शक्र एव च ॥ १ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी जी ने कहा : कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाकर भयंकर वर्षा से व्रजवासियों की रक्षा करने के बाद, गायों की माता सुरभि गो-लोक से कृष्ण के दर्शन करने आईं थीं। उनके साथ इंद्र भी थे।