श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 27: इन्द्रदेव तथा माता सुरभि द्वारा स्तुति  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  10.27.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
गोवर्धने धृते शैले आसाराद् रक्षिते व्रजे ।
गोलोकादाव्रजत्कृष्णं सुरभि: शक्र एव च ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी जी ने कहा : कृष्ण के गोवर्धन पर्वत को उठाकर भयंकर वर्षा से व्रजवासियों की रक्षा करने के बाद, गायों की माता सुरभि गो-लोक से कृष्ण के दर्शन करने आईं थीं। उनके साथ इंद्र भी थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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