वाचालं बालिशं स्तब्धमज्ञं पण्डितमानिनम् ।
कृष्णं मर्त्यमुपाश्रित्य गोपा मे चक्रुरप्रियम् ॥ ५ ॥
अनुवाद
इन ग्वालों ने इस नर कृष्ण की शरण लेकर मेरे प्रति विरोध का भाव दिखाया है क्योंकि कृष्ण स्वयं को अति चतुर मानता है जबकि वह एक मूर्ख, अंहकारी एवं ढीठ बालक है।