श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 25: कृष्ण द्वारा गोवर्धन-धारण  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  10.25.15 
 
 
अपर्त्वत्युल्बणं वर्षमतिवातं शिलामयम् ।
स्वयागे विहतेऽस्माभिरिन्द्रो नाशाय वर्षति ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  [श्री कृष्ण ने मन-ही-मन कहा]: चूँकि हमने उसका यज्ञ रोक दिया है, इसलिये इन्द्र भयंकर हवा और ओलों के साथ अत्यधिक और असामयिक वर्षा करा रहा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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