श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 25: कृष्ण द्वारा गोवर्धन-धारण  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  10.25.14 
 
 
शिलावर्षातिवातेन हन्यमानमचेतनम् ।
निरीक्ष्य भगवान् मेने कुपितेन्द्रकृतं हरि: ॥ १४ ॥
 
अनुवाद
 
  ओलों एवं तेज हवा के निरंतर प्रहार से संग्राम में बेहोश हुए गोकुलवासियों को देखकर श्री हरि समझ गए कि यह कुपित इंद्र का ही काम है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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