श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 24: गोवर्धन-पूजा  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  10.24.5 
 
 
उदासीनोऽरिवद् वर्ज्य आत्मवत् सुहृदुच्यते ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति उदासीनता दिखाकर अपने आप को अलग रखता है, उससे शत्रु की तरह बचना चाहिए | वहीँ, मित्र को हमेशा समान समझना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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