कथ्यतां मे पित: कोऽयं सम्भ्रमो व उपागत: ।
किं फलं कस्य वोद्देश: केन वा साध्यते मख: ॥ ३ ॥
अनुवाद
[भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा]: हे पिताश्री, कृपा करके आप मुझे यह बताएँ कि आप इतना सारा महान् प्रयास किसलिए कर रहे हैं? आप क्या करना चाहते हैं? यदि यह कर्मकांडी यज्ञ है, तो इसकी तुष्टि किसके लिए है और इसे किन साधनों से पूरा किया जाएगा?