श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 24: गोवर्धन-पूजा  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  10.24.22 
 
 
सत्त्वं रजस्तम इति स्थित्युत्पत्त्यन्तहेतव: ।
रजसोत्पद्यते विश्वमन्योन्यं विविधं जगत् ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  सृजन, पालन तथा विनाश के लिए जिम्मेदार, प्रकृति के तीन गुण हैं— सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण । विशेष रूप से, रजोगुण इस ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करता है और संभोग के द्वारा इसमें विविधता आती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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