श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 24: गोवर्धन-पूजा  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  10.24.21 
 
 
कृषिवाणिज्यगोरक्षा कुसीदं तूर्यमुच्यते ।
वार्ता चतुर्विधा तत्र वयं गोवृत्तयोऽनिशम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  वैश्य के वृत्तिपरक कार्य चार प्रकार के माने गए हैं—कृषि, व्यापार, गोरक्षा और धन का लेन-देन। हम एक समुदाय के रूप में हमेशा गोरक्षा में लगे रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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