स्वभावतन्त्रो हि जन: स्वभावमनुवर्तते ।
स्वभावस्थमिदं सर्वं सदेवासुरमानुषम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्वयं की बद्ध प्रकृति के अधीन होता है, और इसलिए उसे उसी प्रकृति का अनुसरण करना चाहिए। देवताओं, असुरों और मनुष्यों से बना यह संपूर्ण ब्रह्मांड जीवित संस्थाओं की बद्ध प्रकृति पर निर्भर है।