श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 24: गोवर्धन-पूजा  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  10.24.16 
 
 
स्वभावतन्त्रो हि जन: स्वभावमनुवर्तते ।
स्वभावस्थमिदं सर्वं सदेवासुरमानुषम् ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्वयं की बद्ध प्रकृति के अधीन होता है, और इसलिए उसे उसी प्रकृति का अनुसरण करना चाहिए। देवताओं, असुरों और मनुष्यों से बना यह संपूर्ण ब्रह्मांड जीवित संस्थाओं की बद्ध प्रकृति पर निर्भर है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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