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श्लोक 15
श्लोक
10.24.15
किमिन्द्रेणेह भूतानां स्वस्वकर्मानुवर्तिनाम् ।
अनीशेनान्यथा कर्तुं स्वभावविहितं नृणाम् ॥ १५ ॥
अनुवाद
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इस जगत में जीवात्मा अपने अतीत के विशेष कर्म के अनुसार फल भोगने को बाध्य है। देवराज इंद्र स्वभाव से बने मनुष्यों के भाग्य को नहीं बदल सकते हैं, तब फिर उनकी आराधना क्यों करनी चाहिए?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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