श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 2-3
 
 
श्लोक  10.22.2-3 
 
 
आप्लुत्याम्भसि कालिन्द्या जलान्ते चोदितेऽरुणे ।
कृत्वा प्रतिकृतिं देवीमानर्चुर्नृप सैकतीम् ॥ २ ॥
गन्धैर्माल्यै: सुरभिभिर्बलिभिर्धूपदीपकै: ।
उच्चावचैश्चोपहारै: प्रवालफलतण्डुलै: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन्, सूर्योदय होते ही गोपियाँ यमुना के जल में स्नान करतीं और नदी के किनारे देवी दुर्गा की मिट्टी की मूर्ति बनातीं। फिर वे चन्दन लेप और अन्य महंगी व साधारण वस्तुओं जैसे दीपक, फल, सुपारी, कोपल, सुगंधित माला और अगरबत्ती से उनकी पूजा करतीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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