श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 22: कृष्ण द्वारा अविवाहिता गोपियों का चीरहरण  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  10.22.12 
 
 
तस्य तत् क्ष्वेलितं द‍ृष्ट्वा गोप्य: प्रेमपरिप्लुता: ।
व्रीडिता: प्रेक्ष्य चान्योन्यं जातहासा न निर्ययु: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  यह देखकर कि कृष्ण उनसे कैसी-कैसी ठिठोलियाँ कर रहे हैं, गोपियाँ उनके प्रेम में इस कदर डूब गईं कि वे लज्जित तो हो रही थीं पर फिर भी आपस में एक-दूसरे को देखकर हँस रहीं थीं और ठिठोलियाँ कर रही थीं। पर फिर भी वे पानी से बाहर नहीं निकलीं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.