श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 21: गोपियों द्वारा कृष्ण के वेणुगीत की सराहना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  10.21.7 
 
 
श्रीगोप्य ऊचु:
अक्षण्वतां फलमिदं न परं विदाम:
सख्य: पशूननु विवेशयतोर्वयस्यै: ।
वक्त्रं व्रजेशसुतयोरनवेणु जुष्टं
यैर्वा निपीतमनुरक्तकटाक्षमोक्षम् ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  गोपियों ने कहा: सखीहो, जो आँखें नंद महाराज के दोनो बेटों के सुंदर चहरों को निहारती हैं, वे सचमुच भाग्यशाली हैं। जैसे ही वे दोनों अपने साथियों से घिरे हुए और गायों को आगे-आगे करके जंगल में प्रवेश करते हैं, वे अपने होठों से बाँसुरी छुआते हैं और वृंदावन के निवासियों को प्यार भरी निगाहों से देखते हैं। हमारे ख्याल से, जो लोग आँखवाले हैं, उनके लिए इससे बड़ी और कोई देखने लायक चीज़ नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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