एवंविधा भगवतो या वृन्दावनचारिण: ।
वर्णयन्त्यो मिथो गोप्य: क्रीडास्तन्मयतां ययु: ॥ २० ॥
अनुवाद
इस प्रकार वृंदावन के जंगल में विचरण के दौरान पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान द्वारा निभाई गई क्रीड़ामयी लीलाओं के बारे में एक-दूसरे से कथाएँ सुनाते हुए गोपियाँ उनके विचारों में पूर्णतया लीन हो गईं।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध दस के अंतर्गत इक्कीसवाँ अध्याय समाप्त होता है ।