हे सखीजनो, जब कृष्ण तथा बलराम अपने ग्वाला मित्रों के साथ जंगलों से अपनी गायों को लेकर गुजरते हैं, तो दूध दुहने के समय गायों की पिछली टाँगों को बांधने के लिए वे नोइयाँ अपने साथ रखते हैं। जब प्रभु कृष्ण अपनी वंशी बजाते हैं, तब मधुर संगीत से चर और अचर जीव एकटक हो जाते हैं तथा वृक्ष हर्ष और उल्लास में झूमने लगते हैं। यह कैसा अद्भुत और आश्चर्यचकित करने वाला दृश्य है!