गायें अपने तने हुए कानों को बर्तन बनाकर कृष्ण के मुँह से निकले बाँसुरी के संगीत के अमृत को पी रही हैं। बछड़े अपनी माँओं के नमी भरे थनों से निकले दूध को अपने मुंह में भरकर स्थिर खड़े रहते हैं जब वे अपनी आँखों में आँसू भरकर गोविंद को अपने भीतर समा लेते हैं और अपने दिलों में उनको गले लगाते हैं।