श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 21: गोपियों द्वारा कृष्ण के वेणुगीत की सराहना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  10.21.13 
 
 
गावश्च कृष्णमुखनिर्गतवेणुगीत-
पीयूषमुत्तभितकर्णपुटै: पिबन्त्य: ।
शावा: स्‍नुतस्तनपय:कवला: स्म तस्थु-
र्गोविन्दमात्मनि द‍ृशाश्रुकला: स्पृशन्त्य: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  गायें अपने तने हुए कानों को बर्तन बनाकर कृष्ण के मुँह से निकले बाँसुरी के संगीत के अमृत को पी रही हैं। बछड़े अपनी माँओं के नमी भरे थनों से निकले दूध को अपने मुंह में भरकर स्थिर खड़े रहते हैं जब वे अपनी आँखों में आँसू भरकर गोविंद को अपने भीतर समा लेते हैं और अपने दिलों में उनको गले लगाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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