धन्या: स्म मूढगतयोऽपि हरिण्य एता
या नन्दनन्दनमुपात्तविचित्रवेशम् ।
आकर्ण्य वेणुरणितं सहकृष्णसारा:
पूजां दधुर्विरचितां प्रणयावलोकै: ॥ ११ ॥
अनुवाद
ये मूर्ख हिरनियाँ धन्य हैं क्योंकि वे नंद महाराज के पुत्र के करीब आ गई हैं, जो बहुत ही सुंदर दिखते हैं और अपनी बाँसुरी बजा रहे हैं। सचमुच ही, हिरनी और हिरन दोनों ही प्रेम और स्नेह से भरी नजरों से भगवान की पूजा करते हैं।