श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 21: गोपियों द्वारा कृष्ण के वेणुगीत की सराहना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  10.21.1 
 
 
श्रीशुक उवाच
इत्थं शरत्स्वच्छजलं पद्माकरसुगन्धिना ।
न्यविशद् वायुना वातं सगोगोपालकोऽच्युत: ॥ १ ॥
 
अनुवाद
 
  श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा : इस तरह वृन्दावन का जंगल स्वच्छ शरद ऋतु के जलाशयों से भरा हुआ था और स्वच्छ जलाशयों में खिले कमलों की सुगंध से हवा ठंडी थी। अच्युत भगवान अपनी गायों और ग्वालों के साथ उस जंगल में प्रवेश किये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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