श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  10.20.6 
 
 
तडिद्वन्तो महामेघाश्चण्डश्वसनवेपिता: ।
प्रीणनं जीवनं ह्यस्य मुमुचु: करुणा इव ॥ ६ ॥
 
अनुवाद
 
  तेज़ हवाओं के कारण बिजली चमकाते हुए विशाल बादल हिल रहे थे और इधर-उधर उड़ रहे थे। दयालु व्यक्तियों की तरह, बादल इस दुनिया की खुशी के लिए अपने जीवन को समर्पित कर रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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