श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  10.20.47 
 
 
उदहृष्यन् वारिजानि सूर्योत्थाने कुमुद् विना ।
राज्ञा तु निर्भया लोका यथा दस्यून् विना नृप ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजा परीक्षित, जब शरदकालीन सूर्य निकला, तो रात में खिलनेवाले कमल के फूल कुमुदिनी को छोड़कर सभी कमल के फूल प्रसन्नतापूर्वक खिल गए, जैसे कि एक सशक्त शासक की उपस्थिति में चोरों को छोड़कर सभी लोग निर्भय हो जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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