श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  10.20.46 
 
 
गावो मृगा: खगा नार्य: पुष्पिण्य: शरदाभवन् ।
अन्वीयमाना: स्ववृषै: फलैरीशक्रिया इव ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  शरद ऋतु के प्रभाव से सभी गायें, हिरणियाँ, महिलाएँ और मादा पक्षी ऋतुमती हो गईं और संभोग सुख की खोज में उनके अपने-अपने जोड़े उनका पीछा करने लगे जिस प्रकार भगवान की सेवा में किए गए कार्य स्वतः ही सभी लाभकारी परिणाम देते हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.