श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  10.20.43 
 
 
खमशोभत निर्मेघं शरद्विमलतारकम् ।
सत्त्वयुक्तं यथा चित्तं शब्दब्रह्मार्थदर्शनम् ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  बादलों से रहित तथा साफ दिखते तारों से भरा शरदकालीन आकाश चमक उठा, जैसे वैदिक शास्त्रों के अर्थ को प्रत्यक्ष रूप से समझने वाले की आध्यात्मिक चेतना।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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