श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 10: परम पुरुषार्थ  »  अध्याय 20: वृन्दावन में वर्षा ऋतु तथा शरद् ऋतु  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  10.20.22 
 
 
सर:स्वशान्तरोध:सु न्यूषुरङ्गापि सारसा: ।
गृहेष्वशान्तकृत्येषु ग्राम्या इव दुराशया: ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  सारस पक्षी वर्षाऋतु में भी सरोवरों के तट पर निवास करते रहते हैं, जबकि उस समय तट अशांत रहते हैं। ठीक उसी प्रकार भौतिकवादी प्रवृत्ति वाले दूषित मन वाले लोग अनेक विघ्नों के बावजूद भी अपने घरों में ही निवास करते रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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