न रराजोडुपश्छन्न: स्वज्योत्स्नाराजितैर्घनै: ।
अहंमत्या भासितया स्वभासा पुरुषो यथा ॥ १९ ॥
अनुवाद
वर्षा ऋतु में जब बादलों की ओट से चाँद आकाश में दिखाई नहीं देता, तब भी बादल चाँद की रोशनी से ही प्रकाशित होते दिखाई देते हैं। ठीक उसी तरह, यह भौतिक दुनिया जीव के असली रूप को झूठे अहंकार के आवरण से ढक कर छिपाती है, हालाँकि यह आवरण भी जीव की आत्मा की चेतना से ही प्रकाश पाता है।